भूरेडी गौशाला में गोवंश की जगह भैंसों की सेवा की जा रही है
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By Admin
Published - 26 May 2025 117 views
भूरेडी गौशाला में गोवंश की जगह भैंसों की सेवा की जा रही है
नेशनल न्यूज 1 बांदा रिपोर्ट- संध्या
बांदा की गौशालाओं में गौवंशों का निर्मम संहार: सभी गौशालाओं से गौवंशों को भीषण गर्मी में सड़कों पर छोड़ा, भूख-प्यास से हो रही मौतें
बांदा उत्तर प्रदेश सरकार गौसंरक्षण के नाम पर हर साल करोड़ों रुपये गौशालाओं को आवंटित करती है, लेकिन बांदा जनपद की हर गौशाला में गौवंशों की स्थिति बद से बदतर हो चुकी है। जिले की सभी गौशालाओं से गौवंशों को 47-48 डिग्री की भीषण गर्मी में बेरहमी से बाहर निकाल दिया गया है, जिसके चलते ये बेसहारा पशु भूख और प्यास से तड़पकर सड़कों पर दम तोड़ रहे हैं। गौशालाएं, जो गौवंशों के संरक्षण का दावा करती हैं, आज मौत के अड्डे बन चुकी हैं, और जिम्मेदार अधिकारी इस क्रूरता पर चुप्पी साधे हुए हैं।हमारी प्रेस टीम ने जब बांदा जनपद की गौशालाओं, विशेष रूप से धुरेणी और त्रिवेणी गौशालाओं का दौरा किया, तो वहां का दृश्य दिल दहला देने वाला था। जिले की हर गौशाला से गौवंशों को बाहर निकाल दिया गया है, और इन गौशालाओं में अब केवल मृत गौवंशों के कंकाल बिखरे पड़े हैं। ये कंकाल इस बात का जीवंत प्रमाण हैं कि गौवंश भूख, प्यास और उपेक्षा के शिकार होकर तड़प-तड़पकर मर रहे हैं। इस जानलेवा गर्मी में, जब इंसान भी बाहर निकलने से डरता है, गौवंशों को सड़कों पर भटकने के लिए छोड़ देना सरासर अमानवीय और अपराधपूर्ण कृत्य है।गौरक्षा समिति विश्व हिंदू महासंघ के जिला अध्यक्ष महेश प्रजापति और जिला उपाध्यक्ष महेश धूरिया ने इस घोर लापरवाही और क्रूरता पर कड़ा रोष जताया। उन्होंने कहा, "सरकार गौवंशों के लिए चारा, पानी और देखभाल के लिए करोड़ों रुपये देती है, लेकिन बांदा की सभी गौशालाओं से गौवंशों को इस तपती गर्मी में बाहर निकालकर मरने के लिए छोड़ देना गौसंरक्षण के नाम पर धोखा है। आखिर यह क्रूर आदेश किसने दिया? प्रशासन और गौशाला संचालक इस जघन्य अपराध के लिए जवाबदेह क्यों नहीं ठहराए जा रहे?" धुरेणी गौशाला के केयरटेकर गुरु प्रसाद ने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए कहा, "हमें नहीं पता कि गौवंशों को बाहर निकालने का आदेश किसने दिया। इस बारे में ग्राम प्रधान और ग्राम विकास अधिकारी ही बता सकते हैं।"बांदा की गौशालाओं में न तो चारे की व्यवस्था है, न पानी की, और न ही गौवंशों के लिए छाया की। गौशालाएं अब केवल कागजी दस्तावेजों में चल रही हैं, जबकि हकीकत में ये गौवंशों के कब्रिस्तान बन चुकी हैं। सरकारी धन का दुरुपयोग और गौवंशों के प्रति यह अमानवीय रवैया न केवल गौसंरक्षण के सरकारी दावों की पोल खोलता है, बल्कि यह भी सवाल उठाता है कि गौमाता के नाम पर कब तक यह छलावा चलेगा?स्थानीय गौभक्तों और जनता में इस निर्मम कृत्य को लेकर उबाल है। वे मांग कर रहे हैं कि जिले की सभी गौशालाओं से गौवंशों को बाहर निकालने के इस क्रूर निर्णय के लिए जिम्मेदार अधिकारियों और गौशाला संचालकों पर तत्काल कठोर कार्रवाई की जाए। साथ ही, गौशालाओं में चारा, पानी और उचित देखभाल की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। यदि प्रशासन ने इस मामले में तुरंत कदम नहीं उठाए, तो जनाक्रोश और उग्र हो सकता है। गौवंशों की इस त्रासदी ने न केवल प्रशासनिक लापरवाही को उजागर किया है, बल्कि गौसंरक्षण के प्रति सरकार की संवेदनहीनता को भी नंगा कर दिया है।
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